Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 129
________________ पुद्गल द्रव्य के स्कन्ध अन्य चार द्रव्यों की तरह नियम रूप नहीं हैं, क्योंकि कोई पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशों का, कोई असंख्यात प्रदेशों का और कोई अनंत प्रदेशों वाला होता है। सूत्र 'च' शब्द दिया है, उससे अनन्त की अनुवृत्ति हो जाती है। में पुद्गल तथा अन्य द्रव्यों में प्रमुख अन्तर यह है कि पुद्गल के प्रदेश अपने स्कन्ध से अलग हो सकते हैं, किन्तु अन्य द्रव्यों के प्रदेश अपने अपने स्कन्ध से अलग नहीं हो सकते, क्योंकि वे समुच्चय रूप से एक साथ ही रहते है। वे अर्मूत (अरूपी) है और अमूर्त का स्वभाव है खंडित नहीं होना। पुद्गल द्रव्य मूर्त है, मूर्त द्रव्य के खंड हो सकते है वे परमाणु परस्पर मिलते है, एक रूप होते है और फिर अलग-अलग भी हो जाते है। इसी अन्तर के कारण पुद्गल स्कन्ध के छोटे-बडे सभी अंशों को अवयव कहते है । अवयव अर्थात् स्कन्ध का एक भाग जो अलग भी हो सकता है। परमाणु के प्रदेश नहीं हैं, क्योंकि वह स्वयं एक प्रदेशमात्र है । जिस प्रकार आकाश का एक प्रदेश अन्य प्रदेश न होने से अप्रदेशी है, उसी तरह अणु भी प्रदेशमात्र होने से उसमें अन्य प्रदेश नहीं है। अणु से कोई छोटा भाग नहीं होता, अतः स्वयं ही आदि और अन्त होने से अणु अप्रदेशी है। छः द्रव्य नाम स्वरूप द्रव्य (अर्थात् गुणों का समुह अजीव द्रव्य (जिसमें चेतना न हो) धर्म अधर्म सभी द्रव्यों को जीव व पुद्गल को जीव व पुद्गल को गति में सहायक स्थिति में सहायक अवगाह देना (स्थान) जीव द्रव्य (जिसमें चेतना हो) काय ( बहु प्रदेशी) अजीव काय नित्य (कभी नष्ट नहीं होते) अवस्थित (अपने स्वरूप को नहीं छोडते) अरूपी या अमूर्त (वर्णादि रहिते) ✓ x ✓ ✓ ✓ x ✓ ✓ ✓ ✓ आकाश X ✓ जीव उपयोग (ज्ञान दर्शन ) 109 For Personal & Private Use Only ✓ V X ✓ पुद्गल सड़ना गलत मिलना बिछुड़ना आदि X x V ༨ ✓ X काल सभी द्रव्यों को परिणाम के सहायक V > X X X > ✓ ✓

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