Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 85
________________ 1 क्षेत्रकन बेदना । चिकन विक्रिया : विक्रिया का अर्थ है मूल शरीर को छोटा-बड़ा बनाने और विभिन्न रूप बनाने की शक्ति। यह शक्ति उन्हें सहज ही प्राप्त होती है। वे दुख से घबरा कर छुटकारे के लिए प्रयत्न करते हैं । सुख के साधन जुटाने से उनको दुख के साधन ही प्राप्त होते हैं। वेदना : नरक में तीन प्रकार की वेदना नारकी जीवों को भोगनी पडती है - 1. क्षेत्र जन्य 2. परस्परजन्य और 3. परमाधामी देवों द्वारा। क्षेत्र जन्य : इस वेदना का कारण नरक-भूमि है। पहली तीन नरक भूमियों में जीव उष्ण वेदना, चौथी में उष्ण शीत, पाँचवी में शीत-उष्ण, छठी में शीत और सातवीं में शीततर वेदना है। यह उष्ण और शीत वेदना इतनी तीव्र है कि नारक जीव यदि मध्यलोक की भयंकर गर्मी में या भयंकर ठण्ड में आ जायें तो उन्हें बडे सुख की नींद आ सकती है। नारकी जीवों को अत्यधिक भूख-प्यास लगती है किन्तु उन्हें खाने को न अन्न का एक दाना मिलता है, न पीने को एक बूंद पानी भी। नारकी जीव 1. अति क्षुधा, 2. अति तृषा, 3. अत्यधिक शीत, 4. अत्यंत उष्ण, 5. अनंत परवशता, 6. तीव्रज्वर, 7. तीव्र दाह (रोग), 8. घोर खुजली, 9. भय, 10. शोक इन वेदनाओं को निरन्तर अनुभव करते हैं। कहा जाता है कि प्रत्येक नारकी जीवों को 5 करोड, 68 लाख, 99 हजार 584 (5,68,99,584) रोग लगे रहते हैं। परस्परजन्य वेदना : नारकियों को भवप्रत्यय 3. परस्परोदीरित-वेदना। अवधिज्ञान होता हैं। जिसे मिथ्यादर्शन के उदय से विभंगज्ञान कहते हैं। इस ज्ञान के कारण दूर से ही दु:ख के कारणों को जानकर उनको दुख उत्पन्न हो जाता है और समीप में आने पर एक दूसरे को देखने से उनकी क्रोधाग्नि भभक उठती है। तथा पूर्वभव का स्मरण होने से उनकी वैर की गांठ ओर मजबूत हो जाती है। जिससे वे कुत्ते और गीदड़ के समान एक दुसरे का घात करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वे अपनी विक्रिया शक्ति से तलवार, फरसा, हथौडा, आदि अस्त्र शस्त्र बनाकर तथा अपने हाथ, पाँव और दांतों से छेदना, भेदना, काटना, मारना, छीलना आदि परस्पर एक दूसरे को दुख देने का कार्य करते रहते हैं। किसी किसी जीव को नारकीय वेदना को भोगते-भोगते भी सम्यक्त्व उत्पन्न हो जाता है। ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव उन दुखों को अपने पूर्वकृत कर्म का फल जानकर समभाव से सहन करते हैं व दूसरों को दु:ख या वेदना नहीं पहुँचाते हैं। SORTIN 456622:07 Toi personal. Prvate se Onty Ja camontemnerlo Niww.jainelibrary.orgare

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