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5. आत्मरक्षक : अंग रक्षक, शस्त्र धारण किये इन्द्र के सिंहासन के पीछे खड़े रहने वाले
देव।
6. लोकपाल : जो देव कोतवाल के समान लोगों का पालन करे या सीमाओं की रक्षा के लिए उत्तरदायी देव।
7. अनीक : सैनिक या सेनापति। जो देव 7 प्रकार की सेना में विभक्त हैं। 8. प्रकीर्णक : सामान्य प्रजाजन अथवा नगरवासियों के समान देव।
9. आभियोग्य : जो देव दासों की तरह सवारी आदि में काम आते हैं। सिंह, हाथी आदि रूप में परिणत होकर विमान आदि को खींचते हैं।
10. किल्विषिक : जो देव चांडाल आदि की भांति हल्के दरजे का काम करते हैं।
देवों के 10 सामान्य भेद
2. सामानिक -
त्रायस्त्रिंश
पारिवद्य - 5. आत्मरक्षक -
लोकपाल - 7. अनीक 8. प्रकीर्णक - 9. आभियोग्य - 10. किल्विषिक -
राजा पिता, गुरू, उपाध्याय मंत्री और पुरोहित मित्र, प्रेमीजन अंगरक्षक कोतवाल सेनापति, सैनिक सामान्य प्रजाजन, नगरवासी दास चांडालादि
इन्द्रों की संख्या पूर्वयोन्द्रिाः ||6||
सूत्रार्थ : प्रथम दो निकाय अर्थात् भवनपति और व्यंतर में दो-दो इन्द्र होते हैं। _ विवेचन : भवनपति के असुरकुमार आदि दस प्रकार के देवों में तथा व्यन्तर के किन्नर आदि आठ प्रकार के देवों में दो-दो इन्द्र होते हैं इनमें से एक उत्तरदिशा तथा एक दक्षिण दिशा का इन्द्र होता है।