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व्यन्तराः किन्नर-किंपुरूष-महोरग-गान्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचाः ||12||
सूत्रार्थ : व्यंतर देवों के आठ भेद हैं - किन्नर, किंपुरूष, महोरग, गान्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच।
विवेचन : सभी व्यंतरदेव ऊर्ध्व, मध्य और अधो इन तीनों लोकों में भवनों तथा आवासों में रहते हैं। वे स्वेच्छा से या दूसरों की प्रेरणा से भिन्न-भिन्न स्थानों पर आते जाते रहते हैं। उनमें से कुछ तो पूर्व भव के स्नेह सम्बन्धों के कारण मनुष्यों की सेवा करते हैं और यदि पूर्वभव का वैर हुआ तो दुख भी देते हैं। विविध पहाडो, गुफाओ वनो तथा वृक्षों के अन्तरों में बसने के कारण उन्हें व्यंतर कहते हैं।
ये आठ प्रकार के होते हैं किन्नर, किंपुरूष, महोरग, गान्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच।
अन्य ग्रन्थों में इनके 26 भेद बताये हैं, जिनमें से 8 प्रकार के व्यंतर, 8 प्रकार के वाणव्यंतर और 10 प्रकार के जृम्भक देव हैं।
ज्योतिषी देव ज्योतिष्काः सूर्यश्चन्द्रमसो-ग्रह-नक्षत्र-प्रकीर्णताराकाश्च ||13||
सूत्रार्थ : ज्योतिष्क देवों के पांच भेद हैं - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णतारे।
विवेचन : सभी ज्योतिष्क देव और उनके विमान अत्यन्त प्रकाशमान होने के कारण इन्हें ज्योतिष्क देव कहा गया है। मेरूपर्वत के समतल भूमिभाग से 790 योजन से लेकर 900 योजन तक ज्योतिष्क देव रहते हैं। ये देव पांच प्रकार के होते हैं - 1. चन्द्र, 2. सूर्य, 3. ग्रह, 4.नक्षत्र और प्रकीर्ण तारा।
प्रकीर्ण तारो से आशय यह है कि कुछ तारे ऐसे भी है जो कभी सूर्य चन्द्र के नीचे गति करते हैं और कभी ऊपर गति करते हैं।
शनि ग्रह 900 योजन समतल भूमि से 790 योजन की ऊंचाई पर तारा का विमान है। - मंगल ग्रह 897 योजन 800 योजन की ऊँचाई पर सूर्य का विमान है। - गुरु ग्रह 894 योजन 880 योजन की ऊँचाई पर चन्द्र का विमान है। शुक्र ग्रह 891 योजन 884 योजन की ऊँचाई पर नक्षत्र का विमान है। बुध ग्रह 888 योजन 888 योजन की ऊँचाई पर बुध का विमान है। नक्षत्र 884 योजन 891 योजन की ऊँचाई पर शुक्र का विमान है।
चन्द्र 880 योजन 894 योजन की ऊँचाई पर वृहस्पति (गुरू) का विमान है। ___सूर्य 800 योजन 897 योजन की ऊँचाई पर मंगल का विमान है।
तारा 790 योजन 900 योजन की ऊँचाई पर शनि का विमान है।
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