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मध्यलोक का वर्णन
द्वीप और समुद्र के नाम, आकार व विस्तार
जम्बूद्वीप-लवणादय: शुभनामानो द्वीप समुद्राः ||7||
सूत्रार्थ : मध्यलोक में जम्बूद्वीप आदि शुभ नाम वाले असंख्य द्वीप तथा लवण समुद्र आदि शुभ नाम वाले असंख्य समुद्र हैं।
द्विर्द्विर्विष्कम्भाः पूर्व-पूर्व-परिक्षेपिणो वलयाकृतयः ||8||
सूत्रार्थ : ये सभी द्वीप और समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं, पूर्व-पूर्व द्वीप समुद्र को घेरे हुए है और चूडी के आकारवाले हैं।
स्वयंभूमण समुद्र की वेदिका
6 योजन धरोदधि वलय
अलोक
साढ़े चार योजन धनवान वलय
द्वीप विस्तार
जम्बूद्वीप- 1-1 लाख योजन
घातकी खंड - 4-4 लाख योजन
डेट योजन
तन्वात वलय
विवेचन मध्यलोक में असंख्यात द्वीप - समुद्र हैं। जो द्वीप के बाद समुद्र और समुद्र के बाद द्वीप इस क्रम से अवस्थित हैं। उन सबके नाम शुभ ही है। जम्बूद्वीप का पूर्व-पश्चिम तथा उत्तरदक्षिण विस्तार एक - एक लाख योजन है, लवणसमुद्र का दोनों तरफ उससे दुगना है। इसी प्रकार घातकी खण्ड का लवणसमुद्र से, कालोदधि का धातकीखण्ड से, पुष्करवरद्वीप का कालोदधि से, पुष्करोदधि का पुष्करवरद्वीप से दुगना दुगना विष्कम्भ (विस्तार) है। यह क्रम अन्त तक चलता है। अंतिम द्वीप स्वयंभूरमण है, जिससे अंतिम समुद्र स्वयंभूरमण का विस्तार दुगना है, मध्यलोक चूडी के समान गोल आकार वाला है।
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समुद्र विस्तार
लवण समुद्र - 2-2 लाख योजन।
कालोदधि समुद्र - 8-8 लाख योजन।
पुष्कर समुद्र - 32-32 लाख योजन।
पुष्कर द्वीप - 16-16 लाख योजन
आगे-आगे सभी द्वीप- समुद्र क्रमशः एक-दूसरे से दुगुने - दुगुने विस्तार वाले हैं।
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