________________
कृषि
अढाई द्वीप में कर्म भूमियाँ व अकर्म भूमियाँ भरतैरावत-विदेहाः कर्मभूमयो-ऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरूभ्यः ||16।। सूत्रार्थ : देवकुरू और उत्तरकुरू के सिवा, भरत, ऐरावत और विदेह ये सब कर्मभूमियाँ है।
विवेचन : कर्मभूमि : जहाँ पर असि (शस्त्रादि), मसि (लेखन व
व्यापार) तथा कृषि (खेती आदि) कर्म करके जीवन निर्वाह किया (15 कर्म भूमि
जाता है, उसे कर्मभूमि कहते हैं। कर्मभूमि में जन्मा मनुष्य ही धर्म आराधना कर मोक्ष आदि प्राप्त कर सकता है। कर्मभूमियाँ 15 हैं। 5 भरत, 5 ऐरावत 5 महाविदेह।
अकर्म भूमि : जहाँ पर असि, मसि, कृषि
आदि कर्म किये बिना ही केवल दस प्रकार के कल्पवृक्षों द्वारा जीवन निर्वाह होता है, वह अकर्मभूमि कहलाती है।
भूमि अकर्मभूमियाँ 30 है। 5 देव कुरू, 5 उत्तर कुरू, 5 हरिवास, 5 रम्यक, 5 हैमवत तथा 5 हिरण्यवत क्षेत्र। यद्यपि देवकुरू और उत्तर कुरू ये दो क्षेत्र महाविदेह के अन्तर्गत ही है तथापि वे कर्मभूमियाँ नहीं है, क्योंकि उनमें युगलिक धर्म होने से चारित्र ग्रहण नहीं होता।
1130 अकर्म
युगल्लिक मनुष्य
मनुष्य एवं तिर्यंचों की आयु नृस्थिती परापरेत्रि-पल्योपमाऽन्तर्मुहूर्ते ।।18।।
सूत्रार्थ : मनुष्य की उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त होती है । तिर्यग्योनीनां च ||19।।
सूत्रार्थ : तिर्यंचों की भी आयु इतनी ही होती है। विवेचन : प्रस्तुत दोनों सूत्रों में मनुष्य एवं तिर्यंचों की आयु का वर्णन हैं।
मनुष्य और तिर्यंच जीवों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम। इस उत्कृष्ट और जघन्य आयु के मध्यवर्ती असंख्यात भेद होते हैं।
सूत्र में यह सामान्य कथन है। मनुष्य तो पंचेन्द्रिय होते हैं किन्तु तिर्यंच गति के अनेक भेद उपभेद है। इसमें स्थावर, त्रस, एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय आदि अनेक भेद है। इन सबकी उत्कृष्ट आयु अलग अलग हो सकती है। यहाँ जो उत्कृष्ट तीन पल्योपम की आयु तिर्यंच जीवों की बताई गई वह गर्भज, स्थलचर, जलचर आदि जीवों की समझना चाहिए।