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जम्बूद्वीप के क्षेत्र, पर्वत, द्रह व नदीयाँ तन्मध्ये मेरूनाभित्तो योजन - शत-सहस्त्र-विष्कम्भो जम्बूद्वीपः ।।७।।
सूत्रार्थ : उन सब (द्वीप-समद्रो) के मध्य में जम्बू नामक गोलाकार द्वीप है, जो एक लाख योजन चौड़ा है और उसके बीचोंबीच मेरूपर्वत है। अत: मेरू को जम्बूद्वीप की नाभि कहा जाता है। तत्र भरत-हेमवत-हरि-विदेह-रम्यक्-हैरण्यवतैरावत-वर्षाः क्षेत्राणि।।10।।
सूत्रार्थ : जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र है - भरत, हैमवत, हरि वर्ष, महाविदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत। तद्धिभाजिनः पूर्व परायता हिमवन्महाहिमवन्निषध-नील-रूक्मि-शिखरिणो वर्षधर-पर्वताः ||11||
सूत्रार्थ : इस क्षेत्रों को विभाजन करनेवाले छ: वर्षधर पर्वत है - हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रूक्मी और शिखरी, जो पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए है।
विवेचन : सभी द्वीप-समुद्रों के मध्य में सबसे छोटा द्वीप जम्बूद्वीप है। जम्बूद्वीप का पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक का विस्तार एक लाख योजन का है। इस द्वीप में जम्बू नामक वृक्ष है। इस कारण इसका नाम जम्बूद्वीप है। यह थाली की तरह गोल है। इसके मध्य में मेरूपर्वत है।
पाण्डुक वन में चारों दिशाओं में चार स्फटिक रत्न की शिलाये है, जिन पर देव-देवन्द्रों द्वारा परमात्मा का जन्माभिषेक महोत्सव मनाया जाता है। इन शिलाओं को अभिषेक शिला कहते हैं।
मेरुपर्वत व ज्योतिष देवों का वर्णन मेरूपर्वत के पास की समभूतला भूमि से 790 योजन ऊपर जाने पर चर ज्योतिष चक्र का प्रारम्भ होता है। वहाँ से ऊपर जाने पर 110 योजन तक ज्योतिष देवों के विमान है। ज्योतिष देव 5 प्रकार के होते हैं। 1. चन्द्र, 2. सूर्य, 3. ग्रह, 4. नक्षत्र, 5. तारा। अढ़ाई द्वीप मनुष्य क्षेत्र का ज्योतिष चक्र निरन्तर मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा करता रहता है। इसे चर ज्योतिष चक्र कहते हैं। अढ़ाई द्वीप में कुल 132 चन्द्र और 132 सूर्य निरन्तर 5 मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा दे रहे हैं। जिनका विवरण इस प्रकार हैंजम्बूद्वीप में
2 सूर्य, 2 चन्द्र लवण समुद्र में
__4 सूर्य, 4 चन्द्र धातकी खण्ड में
12 सूर्य, 12 चन्द्र कालोदधि समुद्र में - 42 सूर्य, 42 चन्द्र अर्धपुष्करार्ध द्वीप में - 72 सूर्य, 72 चन्द्र