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जन्म (नवीन शरीर को धारण करना)
सम्मूर्छन
गर्भज
उपपात (माता पिता के संयोग (माता पिता के
(सभी दिशाओं से के बिना सभी ओर से औदारिक रज और वीर्य से) वैक्रिय पुद्गल के ग्रहण) पुद्गलों के ग्रहण से)
योनियों के प्रकार सचित्त-शीत-संवृता:सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ||33।।
सूत्रार्थ : योनियाँ नौ प्रकार की है। सचित, शीत और संवृत तथा इनकी प्रतिपक्षभूत, अचित, उष्ण और विवृत तथा मिश्र अर्थात् सचिताचित, शीतोष्ण और संवृतविवृत।
विवेचन : जीव के उत्पत्ति स्थान को योनि कहते है। जिस स्थान में पहले पहल स्थूल शरीर के लिए ग्रहण किये गये पुद्गल कार्मण शरीर के साथ गरम लोहे में पानी की तरह मिल जाते है, उसको योनि कहते है। योनियों नौ प्रकार की हैं -
1. सचित्त : जीव सहित योनि। मनुष्य या अन्य प्राणी के पेट में जीव उत्पन्न होते है उनकी सचित योनि है। 2. अचित्त : जीव रहित। दीवार, कुर्सी आदि में जीव उत्पन्न होते है उनकी योनि अचित कहलाती है।
3. सचित्ताचित : योनि का कुछ भाग जीव सहित और कुछ भाग जीव रहित। मनुष्य की पहनी हुई टोपी इत्यादि में जीव उत्पन्न ।
4. शीत : शीत (ठंडा) स्पर्श वाली। सर्दी में जीव उत्पन्न हो। 5. उष्ण : गरम स्पर्श वाली। गर्मी में जीव उत्पन्न हो।
6. शीतोष्ण : योनि का कुछ भाग शीत स्पर्श और कुछ भाग उष्ण स्पर्श वाला हो। जैसे पानी के खड्डे में सूर्य की गर्मी से पानी के गर्म हो जाने पर जो जीव उत्पन्न हो जाते हैं। 7. संवृत : ढकी हुई या दबी हुई यानि। बन्द पेटी में रखे हुए फलों में जो जीव उत्पन्न है। 8. विवृत : खुली हुई योनि। पानी में जो काई इत्यादि जीव।