Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ छोडते हैं, वही से वे सीधे ऋजुगति से गमन करके सिद्धशिला के ऊपर एक समय में विराजमान हो जाते हैं। विग्रह गति समय विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्यः ||29।। सूत्रार्थ : संसारी जीव की गति विग्रहरहित और विग्रह सहित होती है। उसमें विग्रहवाली गति चार समय से पहले अर्थात् तीन समय तक होती हैं। विवेचन : अन्तराल (विग्रहगति) का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय हैं। जब ऋजुगति हो तब एक ही समय और जब वक्रगति हो तब दो, तीन या चार समय समझना चाहिए। समय की संख्या मोड़ या घुमाव पर आधारित है। यदि गति मोड़ रहित होती है तो एक समय लगता है। एक मोड हो तो 2 समय, दो मोड़ हो तो 3 समय, और 3 मोड़ हो तो 4 समय लगते हैं। जीव चौथे समय में तो कही न कही नया शरीर नियम से धारण कर लेता है। जीन की गतिका समबेनी विषम श्रेणी कोण प्रदेश उसकी एक समयोऽविग्रहः ।।30|| सूत्रार्थ : एक समयवाली गति विग्रहरहित होती है। विवेचन : बिना मोड वाली ऋजुगति एक समय वाली होती है। एकं द्वौ वा-नाहारकः ||31|| सूत्रार्थ : विग्रहगति में जीव एक या दो समय तक अनाहारी रहता है। विवेचन : मुक्त जीव के लिए तो अन्तराल गति में आहार का प्रश्न ही नहीं रहता, क्योंकि वह सूक्ष्म और स्थूल सब शरीरों से मुक्त है परन्तु संसारी जीव के लिये आहार का प्रश्न है क्योंकि उसके अन्तराल गति में भी सूक्ष्म शरीर होता ही है। आहार का अर्थ है औदारिक, वैक्रिय, आहारक तथा छ पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करना। ऋजुगति से या दो समय की एक विग्रह वाली गति से जाने वाले अनाहारक नहीं होते क्योंकि वे जिस समय में पूर्व शरीर छोड़ते हैं, उसी समय नया स्थान प्राप्त कर लेते हैं। उस समय वे पूर्व भव या नये भव में आहार ले लेते हैं। यही स्थिति एक मोड़ वाली गति की है, क्योंकि इसके दो समयों में से पहला समय पूर्व शरीर के द्वारा ग्रहण किये गये आहार का है, और दूसरा समय नये उत्पत्ति स्थान में पहुँचने का है। जिसमें आहार लिया जाता है। तीन समय की दो मोड़ वाली तथा चार समय की तीन मोड वाली गति में अनाहारक स्थिति बनती है अर्थात् आहार ग्रहण नहीं करता है। अतएव दो मोड़वाली गति में एक समय और तीन मोड़वाली गति में दो समय तक जीव अनाहारक रहता है। PARLIA O:0205084020 Jail Education Intematorial 5 450 POPersonal rivalau PADARALLY 243523 wwwrandibraries

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162