Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 52
________________ उपयोगो लक्षणम् ||४|| सूत्रार्थ : जीव का लक्षण उपयोग है। जिसके द्वारा ज्ञान और दर्शन गुण की प्रवृत्ति होती है, उसे उपयोग उपयोग कहते है। जीव का लक्षण - सद्विविधो ऽष्टचतुर्भेदः ||9|| सूत्रार्थ : वह उपयोग दो प्रकार का हैं - ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग, ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का और दर्शनोपयोग चार प्रकार का हैं। उपयोग के भेद विवेचन : यहाँ जीव का लक्षण उपयोग बतलाकर उसके भेदों की परिगणना की गयी है। उपयोग के मुख्य दो भेद हैं- ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग ये दोनों उपयोग सब जीवों में पाये जाते हैं। ये दोनों छद्मस्थ में क्रम से होते है और केवलज्ञानियों में युगपत् होते हैं। ज्ञानोपयोग वस्तु को विशेष रूप से ग्रहण करता है और दर्शनोपयोग वस्तु को सामान्य रूप से ग्रहण करता है। इसलिए ज्ञानोपयोग को साकार और दर्शनोपयोग को निराकार कहते है। ज्ञानोपयोग (विशेष जानना) साकार T 5 ज्ञान 3 अज्ञान ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, केवलज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान । दर्शनोपयोग चार प्रकार का हैं - चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । उपयोग ( जीव का लक्षण ) BOR34 P दर्शनोपयोग ( सामान्य जानना ) T निराकार | चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन BBC

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