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संसारिणो मुक्ताश्च ||10||
जीव के भेद
सूत्रार्थ : जीव के दो भेद होते हैं - संसारी और मुक्त। विवेचन : इस सूत्र में जीव के मुख्य दो भेद कहे गये हैं। संसारी और मुक्त।
संसारी जीव : जो जीव आठ कर्मों के कारण जन्म मरण रूप संसार में नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गतियों में परिभ्रमण करते है, उन्हें संसारी जीव कहते हैं।
मुक्त : जो जीव आठ कर्मों का क्षय करके, जन्म, मरण, शरीर आदि से रहित, ज्ञान दर्शन रूप अनंत शुद्ध चेतना में रमण करते है वे मुक्त जीव है।
समनस्काSमनस्काः ||11||
संसारी जीवों के भेद
सूत्रार्थ : संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं - मन सहित और मन रहित ।
विवेचन : मन का अर्थ है विचार करना । मन दो प्रकार का होता हैं। 1. द्रव्य मन और 2. भाव मन ।
जिससे विचार किया जा सके वह आत्मिक शक्ति भाव मन है और इस शक्ति से विचार करने में सहायक होनेवाले एक प्रकार के सूक्ष्म वर्गणा द्रव्य मन है।
सभी जीवों में भाव मन रहता ही है पर द्रव्य मन नही । अर्थात् जैसे अत्यन्त वयोवृद्ध मनुष्य पाँव और चलने की शक्ति होने पर भी लकड़ी के सहारे के बिना नहीं चल सकता वैसे ही भाव मन होने पर भी द्रव्य मन के बिना स्पष्ट विचार नहीं किया जा सकता। इसी कारण द्रव्य मन की प्रधानता मानकर उसके भाव और अभाव की अपेक्षा से मन सहित और मन रहित विभाग किये गये हैं।
मन सहित जीवों को संज्ञी कहते हैं और मन रहित जीवों को असंज्ञी कहते है।
जीव
संसारी (आठ कर्मों से युक्त)
मन रहि
मन सहित (संज्ञी)
(असंज्ञी)
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मुक्त (आठ कर्मों से रहित)