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आन्तरिक उपकरण है तथा पलक आदि बाह्य उपकरण है।
लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ||18||
सूत्रार्थ : भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं - लब्धि और उपयोग
उपयोगः स्पर्शादिषु ||19||
सूत्रार्थ : उपयोग स्पर्शादि विषयों में होता है।
विवेचन : भावेन्द्रिय के दो भेद हैं - लब्धि भावेन्द्रिय और उपयोग भावेन्द्रिय ।
लब्धि : ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर स्पर्श आदि विषयों को जानने की जो शक्ति है, वह लब्धि भावेन्द्रिय है।
उपयोग भावेन्द्रिय : लब्धि, निर्वृत्ति तथा उपकरण इन तीनों के मिलने से जो रूपादि विषयों का सामान्य और विशेष बोध होता है वह उपयोग भावेन्द्रिय हैं।
इन्द्रिय
बाह्य
(पुद्गलो की इन्द्रिय रूप आकार रचना)
बाह्य
(चक्षु की पलके, बरौनी)
निवृत्ति
(रचना)
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द्रव्येन्द्रिय
(पोद्गलिक आकार रचना )
उपकरण
(निवृत्ति का उपकार या शब्दादि विषयों का ग्रहण)
आभ्यन्तर
(आत्म प्रदेशों का चक्षुआदि आकार
रूप)
लब्धि (विषयों को जानने की शक्ति)
अभ्यन्तर
(चक्षु के अन्दर का सफेद, काली पुतली)
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भावेन्द्रिय (आत्मिक परिणाम विशेष )
उपयोग (बोध रूप व्यापार)