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क्षायोपशमिक भाव के भेद
ज्ञान-ऽज्ञान- दर्शन, दानादि - लब्धय श्चतुस्त्रि त्रि पंच भेदा:
यथाक्रमं सम्क्त्व - चारित्र - संयमासंयमाश्च ||5||
सूत्रार्थ : क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद है - चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पांच दानादि लब्धियाँ, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम
विवेचन :
4 ज्ञान
मतिज्ञान
श्रुतज्ञान अवधिज्ञा मन: पर्यायज्ञान
3 अज्ञान
मतिअज्ञान
श्रुतअज्ञान
विभंग ज्ञान
ज्ञानावरणीय
क्षायोपशमिक भाव
3 दर्शन
चक्षु दर्शन
अचक्षु दर्शन अवधि दर्शन
5 लब्धि
दान
लाभ
भोग
उपभोग
वीर्य
दर्शनावरणीय अंतराय
के क्षयोपशम से
सूत्रार्थ : औदयिक भाव के इक्कीस भेद होते हैं
मिथ्यात्व, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व और छ: लेश्या ।
सम्यक्त्व चारित्र संयमासंयम
औदयिक भाव के भेद
गति-कषाय-लिंग-मिथ्यादर्शना - ऽज्ञाना- Sसंयता - ऽसिद्धत्व - लेश्याश् चतुश
चतुस्त्र्येकैकैकेकषङ्भेदाः ||6||
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दर्शन मोहनीय चारित्र मोहनीय
मोहनीय
चार गति, चार कषाय, तीन लिंग,
विवेचन : कर्मों की जातियाँ और उनके अवान्तर भेद अनेक हैं, इसलिए उनके उदय से होने वाले भाव भी अनेक हैं, पर यहाँ मुख्य-मुख्य औदयिक भाव ही गिनाये गये हैं। ऐसे भाव इक्कीस होते हैं।