________________
* पत्नी से सात वचन लेना
( तर्ज - जब तुम्ही चले परदेश लगा कर ठेस )
देता हूँ वचन मैं सात, रखूंगा साथ, कहा सो माना, पर तुम ये वचन निभाना । टेर ।। जो आज्ञा दूं पूरी करना, बिन हुक्म एक पग नहीं धरना । मत सुनी अनसुनी करके जिया जलाना ॥१॥ सहयोगिनी सहधर्मिणी रहना, जीवन में संग-संग बहना, मैं जाऊँ पूर्व तो तुम मत पश्चिम जाना || २ || मानस के अनावृत द्वार रहे, प्रीत की कल निर्झरणा बहे । दो तन एक मन होना न कुछ भी छिपाना ||३|| चाहे वह सुर हो सुरपति हो, चाहे नरपति या रतिपति हो । पर पुरुष समझना भाई न नैन मिलाना ॥४॥ जो मांगेगी दूंगा मैं वह सभी, तुमको यह ध्यान रहे फिर भी, जो मिलजावे उस ही में काम चलाना ॥५॥ संपत्ति विपत्ति की कडियों में, दुःख की यह सुख की घडियों में, तुम साथ छोड़ कर पीहर भाग न जाना ॥ ६ ॥ करुणा सेवा लज्जा गहने, वह धन्य हुई जिसने पहने । तुम दिव्य देवी बन केवल कहे यश पाना ||७||
141