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बापरो केणो मानो, आज्ञा सिर पर धार रे ॥१॥ काठा कपडा पहरण थारे, फैशन सुं नहीं प्यार रे ॥१२॥ भणिया गुणिया हो घणा ने, नव सिधा हुश्यार रे ॥१३॥ मारा बाईसा लाडला ने, सेजां रा सिनगार रे ॥१४॥ खानदान कुल आपरो है, सब गुण रो भंडार रे ॥१५॥ धीरज धरने सुनजो सारा, शुभ गीतां रा सार रे ॥१६॥ ॥ दिनरा जमाई भोजन करते समय बोलने का गीत ।।
(तर्ज-बोल्यो रे बोलयो) बोलयो रे बोलयो गीतां रे खातर बोलयो, ज्ञानवाली रा । घणो फूटरो बोलयो विद्यावाली रा। समय देखने बोलयो अवसर वाली रा। हां रेहूँ। मारे देशरो सेवक यूं । शुभगीत सुनाऊँ हूँ। ॥ बेटी को माता की सिखामण ॥
(तर्ज--- गोपीचन लडका) यूं कहवे माता, सोख सुणाऊँ बेटी सांभलो ।।टेर।। मुश्किल घणी कमाई बाई, पुरुष कमावे लावे। अण पढ़ियोडी नार होय सो, ऊँदो खर्च बढावे रे ॥१॥ चतुर सयाणी समझण तिरिया, घर रो लेखो राखे । आवक सुंखरचो कर कमती, सुखरो मेवो चाखे रे ॥२॥
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