Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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कुल है आपरो मारा बाईजी, मारा बाईजी । मत करजो हलको काम भोजाईजी ॥१॥ ओडीले थे हाथ में मारा बाईजी, मारा बाईजी। क्यों जावो जल्दी बार भोजाईजी ॥२॥ थां लारे फिरता फिरे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कोई व्यभिचारी रूलियार भोजाईजी ॥३॥ गोवर कीड़ा कलबले मारा बाईजी, मारा बाईजी । कांई गोंडोला हो जाय भोजाईजी ॥४॥ बिच्छु विण में नोपजे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कांई रात वगत खा जाय भोजाईजी ॥५॥ गोबर सुं गेणो घसे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कदी कदी गम जाय भोजाईजी ।।६।। गाबा बिगडे ऊजला मा० बा०, कांई आवे मँडो बास हो भो.॥७॥ इज्जत इनसुं कम होवे मा० बा०, क्युं होवे जग बदनाम भो० ॥८॥ गा करे पाडो करे मा० बा०, लो टोगड़ियों रो नाम भो० ॥९॥ लाज शरम ऊंची धरी मा० बा०, थे नाटो पोठा देख भो० ॥१०॥ एक पोठा रे कारणे मा० बा०, थे खावो गाल हजार भो० ॥११॥ लडवा में कमती नहीं मा०, बा०, थे राखो नम्बर वन भो० ॥१२॥ चूडारी चटको करे मा० बा०, दे रांड रंडोंचां गाल भो० ॥१३॥ चंपारी पोशाल में मा० बा०, कांई सीखो खोटा लंछ भो० ॥१४।। काम छोड़ने घर तणो मा० बा०, कांई गप्पों
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