Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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विनय छोड़ सासू ननदां सुं, घणी मचाई राड़ ।
धरम करम री बातां भूलो, गाकर फाड़ कुफाड़ ||२|| मंतर डोरा मादलिया कर, बाबाजी ठग जावे । भेम घाल पाखंडी थांने, अपने जाल फसावे ॥३॥ डाकणियां चूडेला केरो, झूठो घाले भेम । थे भोली डर जावो विरथा, तोड धरम रो नेम ||४|| मिनख पुराणा चवडे कहवे, थांने पगरी जूती । ओ अपमान सहकर बहनों, कब तक रहोला सूती ॥५॥ थे भणियोडी नहीं होवण सुं, ऐडी होवे बात । ज्ञानवान गुणवंती होयने, खरी बतावो जात ||६|| आंधी सरदा मांहे रहता, गया घणा दिन बीत । अब तो शुभ गीतां री पोथ्यां, पढ़ मेटो कुरीत ॥७॥ लाज धरम मर्यादा रख कर सुरीतां लो धार । इणसुं थांरो मान बढेला, और बचेला मार ॥८॥ भणी-गुणी बहनां रे नेडा, लुच्चा कदी न आवे । वे धीरज धारण कर मनमें, पति प्रेम उर लावे ||९|| * चरखा
(तर्ज- जोधाणा ने पाली बीच में लांबी सडकों घाली रे ।) हां रे मांडो अरटियो, सीखामण साची रे ॥टेर || पाछो मांडो अरटियो, क्यूं खूंटी माथे धरियो रे । अरटियो तो देश रो, उपकार करियो रे ॥१॥
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