________________
पति रहे पातरियां मांहि, पत्नि मदन सतावे । जोबन झिलती कामणियां ने, कीकर 'धीरज' आवे ॥८॥
॥ दारूडे की चाट । (तर्ज-मारे छल भवर रो कांगसियो पणिहारी) मारा प्राणनाथ ने समजाऊँ दारूडो छोडो जी ॥टेर।। दारूडो मारूजी छोडो, भूडो भुंडो बासे रे ॥१॥ सडियोडा महूडा सुं होवे, कीकर पीयो जावे रे ॥२॥ दारूडो पिया सुं कालो मिनख तुरंत हो जावे रे ॥३।। तांगी खातो होवे नागो, खाली में पड़ जावे रे ॥४॥ आय कूतरो मुंडा मांहे, सूंघ मूत कर जाये रे ॥५॥ अकल भ्रष्ट होने से पागल, चरको स्वाद बतावे रे ।।६।। माय बहु बहनों बेटी ने, एक नजर थी भाले रे ।।७।। बल बुद्धि ने रूप डील रो, पीतां प्राण गमावे जी ॥८॥ दिन भर दोरी करो मजूरी, घर पैसा नहीं लावोजी ॥९॥ धूजे टाबर नागा. रेवे, पूरो धान न पावे जी ॥१०॥ पैसारो पेशाब लेयने, ठेके में पी आवो जी ॥११॥ खोटा खत में दसखत करदो, लारा सुं पछतावोजी ॥१२॥ नशा रे परवश पडियां सं, होवे खून खराबीजी ॥१३॥ जो थे चावो देश सुधारो, मारी विनंती मानोजी ॥१४॥ धीरज धर समझाऊँ बालम, मानो सोगन ले लोजी॥१५॥
202