Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ मारा धन-धन धीरज आपने, गीत सुधारक सांचा देश रा ॥१९॥ ॥ वेश्या निषेध ॥ (तर्ज-मोटर होले-होले हाक ड्राइवर मेरा मन) में थने बार-बार समझाऊं बालम पातर रे मत जाय । वेश्या रे मत जाय थाने लेवेला विलमाय ॥टेर।। खानदान अति उत्तम थारों, चालो चोखो चाल । पातरियां रे परवश पडियां, होवेला बे हाल ॥१॥ मोंडी लागे कुल रे माथे, लोग आंगली काढे। . बडेरां रो बट्टो लागे, जाताँ रास्ते आडे ॥२॥ प्रीत करे धनवान पुरुष सुं, झूठो प्रेम दिखाय । माल उतारे मुलक-मुलक ने, चूंट-छूट ने खाय ॥३॥ पैसा जद नहीं पास रहे तद, सांमी भी नहीं भाले। तोतावाली आंख पलटने, जूता मार निकाले ॥४॥ कंचन काया माटी होवे, लागे खोटा रोग । गरमी ने सुजाक हुवां सुं, हंसे देख के लोग ।।५।। भोला मिनख भरम में पड़ने, पहले देखे नाच । नेणारा टमकारा सेती, फंसे कहूँ मैं साच ॥६॥ कूण-कूण सारंगी पूछे, तबला दे धिक्कार । हाथ काढ पातर बतलावे, सांभलो सरदार ॥७॥ 201

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214