Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 196
________________ ॥ ६ ॥ दोरी वगत में काम आवे, टाबरिया पेरे तो दोसे फूटरा ओ राज || में ॥ ७ ॥ पूंजी घटे चौरी बढ़े गौरी, टाबरिया पेरे तो मारया जावसी ए नार ॥ कांई ||८|| सहजे छोडूं भार साहब, करसूं अब सिनगार पतिव्रता धर्म रो हो राज || में ॥ ९ ॥ टावर मैला दुबला गौरी, साखी ने मछरिया काटे सूगला हो नार ॥ कांई ॥ ||१०|| रोज नावसुं टाबरों ने, गाबा तो पहरासुं वाने ऊजला हो राज || में ॥। ११॥ अम्बल क्यूं दो टाबरों ने, नशा सुं मरजासे टावर मोकला हो नार ॥ कांई ॥ ||२१|| दूध पिलासुं टेम्पर ढोला, अम्मल तो देवन री है सोगन आज सूं ओ राज ॥ १३॥ धीरज मन हरख्यो घणो गौरी मारी सगली सीख थे हिरदे धार ली हो नार ॥ १४॥ || गौरी रा साहिबा | (तर्ज- मन मोहन साधुजी थुनि ) राज । गौरी रा साहिबा परदेशां बसिया ओ पधारो बालमा शुभ गीतां रा रसिया हो । टेर ॥ कागज लिख भेज्या घणा रे, एकण की नहीं पहुँच के तो वे पहुँच्या नहीं रे, के घर को नहीं सोच ॥ १ ॥ थां लारे मैं छोडिया रे, बाला माय बाप | देय दिलासा कागजां रो, छोड़ गया घर आप ||२|| 191

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