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पीहर छोड्यो लारे आप रे आई । आप कदी भी दिल री बातों खोल नहीं दरसाई ॥२॥ पांच वरष परण्यो ने हो गया कदई दाय नहीं आई। बात-बात में रूठ आप तो राती आंख दिखाई ॥३॥ मारो रंग सांवलो थाने निशदिन लागे खारो । आ तो बात हाथ कुदरत रे मारो नहीं हो सारो ॥४॥ साथीडो ने साथ लेय ने गोठ गूंगरी जावो । उठे बुलावे पातरियों ने जिनरो मरम बतावो ॥५॥ हुकम उठाने वाली नारी घर री लागे खारी। पर नारी हरनारी धन री किन विध लागे प्यारी ॥६॥ बारे पग पड़ गयो आपरो मारा सुं नहीं छानो श्री नाथ पछताणो पड़सी धीरज धर नहीं मानो ॥७॥
॥ पति-पत्नी का संवाद ।। (तर्ज-आठ कुआ नव बावडी पणिहारी रे लो)
आयी सावन री तीज ओ मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी हिडोलो देवो गलाय साहबजी ॥१॥ हिंडोलो पर मत बैठजे गुणवंतीजी, गुणवंतीजी, वायु काया री हिंसा थाय बुद्धिवंतीजी॥२॥ नीचे पडे तो तल ने लागे गुणवंतीजी, गुणवंतीजी हाथ तो पैर टूट जाय बुद्धिवंती जी ॥३॥ लम्पटी पुरुष देखे घणागुणवंतीजी, गुणवंतीजी,
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