Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 192
________________ गीत सुनावेलाजी, सुनावेला ॥६॥ वे पडिक्कमणो देवे सुनाय, बैठने सुनोलाजी-सुनोला ॥७॥ वाने स्कूल देवो खुलाय, विद्यावंती होवेलाजी होवेला ॥८॥ थाने कुल री शोभा बढ़ाय, धर्म दिपावेलाजी दिपावेला ॥९॥ ॥गिनगोर ॥ (तर्ज-- शान्तीलालजी रे सात बेटा बाई ए) आदिनाथजी रे सौ बेटा बाई ए ब्राह्मी, सौवां री बधाई मांगा बाई ए सुन्दरी, आदेश्वरजी चौंसठ कला सिखाई बाई ए ब्राह्मी, बहोत्तर कला का ज्ञान बताया बाई ए ब्राझी, ब्राह्मी सुन्दरी ज्यं माने ज्ञान सिखाइजो सुनो ओ पिताजी, सामायिक पडिक्कमणो पच्चीस बोल सिखायजो सुणो ओ पिताजी, नवतत्व रा भेद बतायजो सुनो ओ पिताजी, स्थानक जावां दर्शन करतां गुरुका ओ पिताजी, व्याख्यान सुनने बुद्धिवंत होसं ओ पिताजी, गुरुजी ऐसा ज्ञान सुनाया सुनो ए बायां ।। फैशन को तो त्याग दीजो सुनजो ए बायां सादो सूदो जीवन राखो गुणवंती ए बायां, सिनेमा नाटक देखन मत जाइजो शीलवंती ए बायां, लोकां में अपजस होसी जीवन बिगड़ जासी ए बायां, गंदा गीत कदी मत गायजो बाजरां मत हंसजो ए बायां, सीख मानो तो थे सुख पासो नहीं तर अपजस पासो ए बायां ॥ 187

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