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विजयपिंगाणी, बनावजो, सत्य को कुंकुम घोलाणोजी ॥१२॥ अक्षय गुण आखा चढाइये, प्रश्न का पान विचारोजी। कोति फूल शुभवासना, ध्यान की धूप उदारोजी ॥१३॥ शुक्ल लेश्या को रुई करो, नेम नैवैद्य लीजोजी, आवत रज परिटालवां, त्याग को गहणो ढांकोजोजी ॥१४॥ परमेष्टी गुण शुद्ध दाखियां, गावजो गीत रसालोजी । पूजा करो इस शाश्वती, सकल कर्म होय टालोजी ॥१५॥ धर्म पुत्र चोखो रहे, रिद्दि-सिद्धि बहु थावेजी। शिवरमणी वरे शाश्वती, दुःख कदी नहीं आवेजी ॥१६।। उन्नीस सौ अड़तीस शीतला दिने, कीनी थी यह सज्झायोजी, देश दक्षिण के मांय ने, तिलोक ऋषि फुरमावेजी ॥ पूजो ॥१७॥
॥ लड़कियां गुड़लियो फेरने का गीत ।। ( तर्ज-गुड़लिया रे बांध्यो सूत गुड़लियो धूमेलाजी घूमेला )
सहेलयां रो मिल गयो साथ, कलश लेवेलाजी लेवेला ॥१॥ वे लीनो अपने हाथ, भरतजी रे घर आवेलाजी-आवेला ॥२॥ ये ऊभी आंगण मांय, आदर देवेलाजी, देवेला ॥३॥ गलिछो देवी बिछाय सहेलियां बैठेलाजी, बैठेला ॥४॥ सुभद्राजी आओ पात, रुपैया देवेलाजी, देवेला ॥५॥ वाने दूध तो देय पिलाय, शुभ
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