Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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पूजो ॥१॥ चतुराई चूलो थापजो, कर्म इंधन करो भावेजी । तप अग्नि धकावजो, काया कडाई चढ़ावेजी ॥ २ ॥ करुणा रस घृत पूरजो, निर्ममता कर मेंदोजी, क्षमा रूप खाजा करो, सुगुण गुंजा उमेदोजी ॥३॥ परमारथ पूडी करो, पुण्य-पाप खीचड जाणोजी । संतोष रूप करो लापसी, समता शक्कर बखाणोजी ॥४॥ धर्म मोदना मोदक करो, जयणा जलेबी बनावोजी । प्रीत रूप पेडा करो, प्रेम का घेवर बनावोजी ॥५॥ दया का दूध ओटावजो, दान को दही जमावोजी । सुबुद्धि रूपी बरफी भली, उपयोग का ओला बनावोजी || ६ || बडा करो विज्ञान का, गुलगुला गुप्ति रसालोजी, भावना रूप भुजिया करो, हेतु दृष्टांत मसालोजी ॥७॥ गुरु सेवा रूपी सेवां करो, तत्व को तेवन ठवोजी । भज पकोड़ी चरपरी, सुकथा कचोरी सरावोजी ॥८॥ चौकसी चौखा आणीजी, रूप रुच रायतो करीजोजी, घाट राब करबो करो, हिरदे हांडी में धरजोजी ||९|| स्नान करो उपशम जले, पाप को मैल पखालोजी | शील शृंगार सजोसरे, कषाय अग्नि को टालोजी ॥१०॥ सुगुरु केन कलसां विषे, ज्ञान का जल भर लेवोजी । मेंदी अहो अनुमोदना, सुमती सुपारी ठावोजी ॥११॥ स्थिर परिणाम थाली करो, विवेक बाटको जाणोजी
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