Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 193
________________ ॥ गिनगोर ॥ (तर्ज-हां ए मारो गवरल माथन मेमद लावसां) हां ए मारी शासन जिनधर्म की रक्षा पाल ए, पुन्य गोरो ने पाप सांवलो ॥१॥ हां ए मारी शासन धर्म दोय प्रकार ए, साधु श्रावक नो जाणी ए ॥२॥ हां ए मारी शासन, विनय धर्म मूल ज णी ए, दया रे मुकुट सुहावनो ॥३॥ हां ए मारी शासन नव रत्न नव सर हार ए, करुणा रा कुण्डल शोभता ॥४॥ हां ए मारी शासन व्रत रा रतन जडाय ए, नथनी जतना री शोभती ॥५॥ हां ए मारी शासन, सत्य धर्म बाजु बंध ए, चुडलो तो सोवे सेवा धर्म को ॥६॥ हां ए मारी शासन, वैयावच्च की मूंदडी ए, किरिया कंदोरो दोपतो ॥७॥ हां ए मारी शासन, जतना रा बाजे थारा घघरा ए, शान्ती वरतायजो सारा तीर्थ में ॥८॥ हां ए मारी शासन ऐसी गिनगोर थे पूजसो ए, होवेला परम कल्याण है ॥९॥॥इति॥ ॥ गोबर थे मत बीणजो मारा बाइजी ॥ ॥ श्रावण के तीज के दिन गाने का गीत ॥ __ (तर्ज-आठ कुआ नव बावडी पणिहारी रे लो) गोबर थे मत बीणजो मारा बाईजी, मारा बाई जी । कांई जिणसु जावे लाज भोजाई जी ॥टेर। उत्तम 188

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