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को थे घोट-घोट पोवो, संतोष की शक्कर मिलाओ भविका ॥१०॥ धर्म कुटुम्ब संग, सुमति सुहागन, हिलमिल गेर खूब खेलो भविका ॥११॥ सज्झाय का ढर्फ लेवो, झांझलो भजन को, प्रभु गुण गान खूब गावो अविका ॥१२॥ लोभ रूपी इलोजी, महानिर्लज जग में, जिनको थे खूब तरसावो भविका ॥१३॥ जिनवाणी पानी, वैराग्य रंग घोलजो, उपदेश की पिचकारी भर मारो भविका ॥१४॥ शुक्ल लेश्या की झोली, गुलाल शुभ ध्यान को, भर-भर मुट्ठी उडावो भविका ॥१५॥ संवर की सूकडी ने, गोठ करो ज्ञान की, गेर चारों तीरथ काडो भविका ॥१६॥ तेरह क्रिया की थे नानणो करजो, दया की दुकान मांड बैठो भाविका ॥१७॥ ऐसो भाग रमो, साल-दरसाल थे, सिद्धपुर पाटन में बसो भविका ॥१८॥ भारी करम जाके, दाय नहीं आवसी, हलुकर्मो सो हरषावे भविका ॥१९॥ जो नहीं मानसो तो, आगे पछतावसो, सतगुरु ज्ञान बतावे भविका ॥२०॥ उगनीस सौ सैंतीस, फागण वदी में, बीज बुधवार आयो भविका ॥२१॥ तिलोक ऋषी कहे मिरज गांव में, धरम को फाग सरायो भविका ॥२॥
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