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श्राविका, ये चारों ही उत्तम जान ॥ साधु संता ने वन्दना जो करनो, ज्ञान सीखो बारम्बार ॥ चौदह प्रकार का दान जो देनो, ओ श्रावक रो आचार ॥ श्रावक-श्राविका साधर्मी भाई, यारी सेवा उत्तम जान ॥ आहार-पानी, वस्त्र दान जो देनो, श्री संघ में सुयश थाय ।। गोत्र तीर्थकर बांधे बोंदराजा, चार तीरथ सेवा जान ।। कृष्ण श्रेणिक नी परे तीर्थकर गोत्र बंधाय ॥ श्री संघ री सेवा पुन्यवंत करसी, वरतेला मंगलाचार ॥ . धडीन्दो
(तर्ज - छाती धड़के डरपो मत ।) मारे अठासु आयो रे धडीन्दो, सगां रो दिल हर्षे-हर्षे भल । हां रे हर्षे भल, में तो शुभ गीत गासां बार-बार गासां ॥टेर॥ फलाण चन्दजी वाली निजपति प्यारी, थारा सुं मैं बात करसुं ।।१।। अमुकरामजी वाली लायी सुपारी, पति आज्ञा में रहे नारी ॥२॥ फलाणमलजी वाली पंखी डोले, सारां सुं मीठी बोले॥३॥
॥ भोजन के समय ब्यायजी को गाने का गीत ॥ (तर्ज--सांमली भीत विजोरा मां, या, ओरारी भीत, झेलू बीजोरा ले) लारली रात ब्यायजी आया, आया सरवर री पाल ।
लावो वेवायां ने ।।टेर॥
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