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जैसे नाम गरुड़ का जो लेवे कोई,
काटा सर्प का जहर उतारे सही। तैसे शान्ती के नाम से पाप अदा ॥३॥
शान्ती नाम का अमृत प्याला सदा। जो पीवे पिलावे अमूल्य सुधा।
पावे स्वर्गरु मोक्ष भला सर्वदा ॥४॥ अनुभव के ही साथ कहे सबसे,
पूज्य गुरु अमोलक यूं तुम से। होवे शान्ती ही शान्ती गावो सदा ॥५॥
॥ राती जोगा रो गीत ।।
(तर्ज-सोना री डांडी राजा रूपा रा चेडा)
आदिनाथ भगवान अरिहंत कहलावे, आठ कर्म तोडी मुगते सिधाया जी। उनरी शासन की माता चक्रेश्वरी कहलावे। रक्षा करे श्री संघ की जी। पिताजी मनाने और माता जी हर्षावे । चक्रेश्वरी तो विपदा निवारती जी। माथा ऊपर मुकुट कानां कुण्डल, हिवडे तो नवसर हार । नवकार का ध्यान जो प्राणी करसीजी। उनका तो कष्ठ-दुःख दूर होसीजी ॥
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