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चारो दिशा में खूटिया रुपावोजी । ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप कहलावेजी । काचा-ताणा ज्यूं संसार है काचोजी । चवदहवाँ स्वप्न अग्नि री साक्षी देवेजी। पति-पत्नी विश्वासघात मत करजोजी । करो तो अग्नि ज्यं दुःख पासोजी । पंडित ने पास बैठावोजी । मंत्र नवकार लोगस्स सुनावोजी । शान्तिनाथ का स्तोत्र सुनावोजी । भक्तामर का श्लोक सुनावोजी । मंगलिक उत्तम श्रेष्ठ सुनावोजी । चार कलश माता-पिता लेने आवेजी। अगर, चन्दन, केसर ने कुंकुजी। आरती करने धन देवोजी। मामाजी आयने सेवरो दिरावेजी, वीराजी आयने सेवरो पेरावेजी । सात वचन बनी ने बना देवेजी । सात वचन बना ने बनी देवेजी, आगे तो ए फेरा फिरावेजी॥
॥ चंवरी में पंडितजी वर-वधु को हित शिक्षण देना।
नवा नगर सुं पंडित आयो, सियल सुभषण साथे लायो ॥१॥ गुणवंती गौरी ने देखकर, नीति रो मारग दिखायो ॥२॥ सत्य धर्म ने साचो पालो, ऐडो चोखो ज्ञान करायो, पती धर्म री पाति बांधी, समता रो सिर पेच लगायो चतुराई री चंपों पहरी, विनय धर्म री वाली लायो नित्य नियम रो दे तिमणियाँ, हिम्मत रो
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