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गलहार धरायो ज्ञान ध्यान रा दिया गोखरू, गजरो शुभगुण रो पहरायो गुण रूपी गहना पहराई, मुणवंती रो नाम दिपायो सत्य शीलरा गीत गायने, मंगल में मंगल वरतायो लाज सहित संचरजो बहिनो, यूँ कह पंडित नगर सिधायो शुभ गीतां सु स्नेह सवायो, धीरजमल श्रीनाथ लगायो ।
॥ पती से सात वचनों की माँग ।।
(तर्ज - जब तुम्हों चले परदेश लगा कर ठेस । ) ले हाथ में मेरा हाथ, वचन दे सात, गृहिणी बनाना
जीवन भर मुझे निभाना ॥टेर।। आज्ञा नहीं सिर्फ सलाह लेना, जो काम करो सो कह देना
गृहस्थी को नया ऐसे पार लगाना ॥१॥ गलती हो तो शिक्षा देना, एकान्त में चाहे सो कहना।
ननंद सखियों के आगे, न आँख दिखाना ॥२॥ मैं तुम पर ही दावा रखती, औरों से मांग नहीं सकती
आवश्यक वस्तु मेरी सारी लाना ॥३॥ सुख दुःख या रोग राग रंग में, रखना सब समय मुझे ___ संगमें। छोड़ना हाथ मन अध बीच छे दिखाना ॥४॥ गैरों से प्रीति लगाना मत, परनारी के घर जाना मत ।
दुई को छोड़ कर प्रेम रंग वर्षाना ॥५॥ गंगा यमुना का मेल चले, इस मेल में जीवन खेल चले
केवल कहे कर्तव्य पालनकर सुखपाना ॥६॥
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