Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १
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पउमवर-पोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, जाव सेयंसि णिसण्णे । तए णं से पुरिसे एवं वयासी - ... "अहो णं इमे पुरिसा अखेयण्णा-अकुसला-अपंडिया-अवियत्ता-अमेहावी बालाणो मग्गत्था-णो मग्गविऊ-णो मग्गस्स गइ-परक्कमण्णू ज णं एए पुरिसा एवं मण्णे-अम्हे एयं पउम-वर-पोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो, णो य खलु एयं पउम-वरपोंडरीयं एवं उण्णिखेयव्वं, जहा णं एए पुरिसा मण्णे । अहमंसि पुरिसे खेयण्णेकुसले-पंडिए-वियत्ते-मेहावी-अबाले-मग्गत्थे-मग्गविऊ-मग्गस्स गइ परक्कमण्णू, अहमेयं पउम-वर-पोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति कटु ।"
इति वुच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरिणिं । जावं जावं च णं अभिक्कमे तावं तावं च णं महंते उदए, महंते सेए, जाव अंतरा पोक्खरिणीए सेयंसि णिसण्णे। तच्चे पुरिस जाए ॥४॥ ___ अब तीसरे पुरुष के विषय में कहते हैं । तीसरा पुरुष पश्चिम दिशा की ओर से, उस पुष्करिणी पर आकर, किनारे पर खड़ा रह कर, पुष्करिणी में श्रेष्ठ कमल और उसे प्राप्त करने के लिये जाने वाले, कीचड़ में फंसे हुए दो व्यक्तियों को देखता है ।
(शेष सूत्र का अर्थ तीसरे सूत्र के समान है।)
अहावरे घउत्थे पुरिसजाए ।अह पुरिसे उत्तराओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरिणिं, तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासइ, तं महं एगं पउम-वर-पोंडरीयं अणुपुव्युट्टियं जाव पडिरूवं, ते तत्थ तिण्णि पुरिसजाए पासइ, पहीणे तीरं, अपत्ते जाव सेयंसि णिसण्णे । तए णं से पुरिसे एवं वयासी -
"अहो णं इमे पुरिसा अखेयण्णा जाव णो मग्गस्स गइ-परिक्कमण्णू, जण्णं एए पुरिसा एवं मण्णे अम्हे एयं पउम-वर-पोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो णो य खलु एवं पउमवर-पोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं, जहा णं एए पुरिसे मण्णे । अहमंसि पुरिसे खेयण्ण जाव मग्गस्स गइ-परक्कमण्णू, अहमेयं पउम-वर-पोंडरीयं एवं उण्णिक्खिस्सामि त्ति कट्ट' - - इति वुच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरिणिं । जावं जावं च णं अभिक्कमे तावं तावं च णं महंते उदए, महंते सेए जाव णिसण्णे । चउत्थे पुरिसजाए ॥५॥
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