Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ यह लोक मान्य सिद्धांत है, कि संसार के सभी प्राणी, चाहे वे मनुष्य हो, वा मनुष्येतर हों, सुख चाहते और दुःखों से डरते हैं और इस लिए वे दुःखों से बचने, या छूटने, तथा सुख प्राप्तिके लिए निरन्तर उद्यम शील रहते हैं, उनकी समस्त. चेष्टाए दुःखों से छूटने और सुख प्राप्त करने के लिये हो होती है, जैसे, खाना, पोना, उठना, बैठना, चलना, फिरना, देश विदेशों में यात्रा करना, व्यापार करना, पढ़ना, पढ़ाना, सोना, जागना, तीर्थ यात्रा, जप, तप, दान, पूजा, सेवा, भक्ति आदि। यह बात दूसरी है, कि उनको उनकी इन चेष्टाओं से इच्छित फल न मिलता हो, किन्तु भावना में कोई भूल नहीं है । लक्ष्य तो सब का एक ही है। जब सब का एक ही लक्ष्य है और सभी उद्यम शील भी रहते हैं तब क्या कारण है, कि उनको सफलता नहीं मिलती ? यह प्रश्न होता है तो उत्तर यह है, कि कितने तो अपने लक्ष्य को ही नहीं पहिचानते, किन्तु केवल उसका नाम ही रटते रहते हैं और इस लिए वे चाहे जिसको अपना लक्ष्य मान २ कर उसे पकड़ने जाते हैं, परन्तु उसी २ में धोखा खोकर दुखी होजाते हैं, निराश होकर पछताते हैं, फिर अन्यत्र जाते हैं, वहां भी धक्का खाते हैं, इसी प्रकार पागल की तरह भटकते रहते हैं, परन्तु सुख नहीं पाते । वास्तव में शीतलता प्राप्ति का इच्छुक शीतलता को जाने बिना यदि अग्नि में प्रवेश करेगा, तो जलेगा ही, इसमें सन्देह नहीं । इस लिये सब से पहिले सब ही प्राणियों . को अपना लक्ष्य ठीक २.पहिचान लेना चाहिए।

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