Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 66
________________ कर माथे चढ़ाती थी, उस स्थान पर कई धर्मशालाएं बन गई, और सदैव मेला सा भरा रहता था, बात यह थी कि लोगों को उनके भावी अदृष्टानुसार जो होना होता, सो होता तो वही था, 'परन्तु लोग अपने २ अभिप्रायानुसार उसको गाली व चेष्टाओं का अर्थ लगा लेते थे, यदि किसी को कुछ इच्छित कार्य होगया तो वह उसी का प्रताप मान कर खूब गुण गान करता, कि दादाजी के प्रताप से यह हुआ। यदि कुछ न होता या उल्टा: होता तो कहता कि "दादाजी ने तो ऐसा कहा था, परन्तु मैं मूर्ख नहीं समझा इत्यादि सटोरियों के माफिक लोग अनुमान लगा लिया करते हैं, वास्तव में वहाँ चमत्कार आदि कुछ नहीं होता, किसी के यश प्रकृति का उदय आता है, तब किसी निमित्त से वह हो जाता है, इस लिये:-- ___लोगों को यह जान कर श्रद्धान करना चाहिए, कि संसारी प्राणियों को, हानि-जाम, जीवन-मरण, सुख-दुख, इष्टानिष्ट संयोग वियोग, जो कुछ भी होता है, वह उसके पूर्व संचित पुण्य किंवा पाप कर्मों का उदयजन्य फल है, उसमें बाह्य निमित्त कोई चेतन अचेतन पदार्थ द्रव्य क्षेत्र काल व भावानुसार बन जाते हैं, ये कोई प्रबल कारण. नहीं, प्रबल ( उपादान ) कारण तो पूर्व पुण्य या पाप कर्मों का विपाक ही है, उसीके अनुसार कारण वनजाते हैं। .. , इसलिये लोगों को चाहिए, कि वे इन कुगुरु ( मिथ्याष्टि नाना प्रकार के भेष धारी, धूर्त पाखण्डी, मंत्र, तंत्र, यंत्रादि । का ढोंग बताने वाले, भारम्भी परिग्रही, विपयी, लोभी, कामी, क्रोधी

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