Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ आदि कषायी नाम धारी गुरु, साधु ) कुदेव (रागी द्वेषी, क्रोधी, कामी, कर, बलिदानादि हिंसाके आयतन देव) कुशास्त्र, (हिंसा, व्यभिचार, चोरी, झूठ, परिग्रहवृद्धि आदि पापों तथा सुभा, शिकार, दारू, मांसादि व्यसनों के पोषक यो एकान्त; विपरीत, अज्ञान, विनय और संशयादि मिथ्यात्वों के पोपक ग्रन्थ ) और कुधर्म (त्रस स्थावर जीवों की द्रव्य और भावहिंसा से भरे हुए, विषय और कपाय बढ़ाने वाले, व्रत, जप, तप, तीर्थ स्नान, दान, होम, पूजा, जैसे दिनमें लंघन करके रात्रि को खाना, शुद्ध अनाज, घी, दूध को छोड़कर अनन्तकाय कन्द मूलादि व फल फूल खाना, पंचाग्नि तपना, जिसमें अग्नि के संयोग से अनन्ते त्रस स्थावरों का घात हो जाता है, भस्म लपेटना, मृगचर्म बाघंबर रखना,गोमुत्र या गोमय को पवित्र मानकर खाना, हिंसापोपक दान देना, जैसे शस्त्र आदि या गांजा, भंग, घरल आदि साधुओं को देना, बलिदान करना, यज्ञादि में वकरादि पशुओं को होमना, दशहरादि पर्यों में भैंसे, पड़ा आदि मारना, स्त्री दान करना,मरण पीछे इस इच्छासे दान देना कि चे पदार्थ मृत जीव के पास पहुंच जायगे, श्राद्ध करना, मरण की जीमन [नुकता करना, किसी तीर्थादि में जाकर बोलकों के बाल उदरवाना। रात्रि को जागरण करके जुआ खेलना या विषय वासना व कपायों के बढ़ाने वाले, गीत नृत्य वादित्रादि में मनोरञ्जन करना, पुरुषों को स्त्री का रूप या स्त्रियों को पुरुषों रूप बनाकर गाना, नाचना, इत्यादि या हुर्रइयों, गायनियों के नाम से स्त्रियों को जिमाना, हरघंटे, गणेश चौथ, गोपाष्टमी उत्तरायण आदि व्रत रखना, संक्राति व ग्रहण आदि समयों में.. अमुक लोगों को अमुक वस्तु का दान देना, अमुक अनाज या

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84