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फल खाना, हजामत कराना, गङ्गादि नदियों में नहाना, इत्यादि) को छोड़कर
सच्चे देव (१८ दोषों से रहित अर्हत तथा सर्व कर्मों से रहित सिद्ध परमात्मा ) विषय कषायों पर विजय पाने वाले निरारंभी निष्परिग्रही, ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहने वाले दिगम्बर साधु गुरु,मिथ्यात्व के नाशक पूर्वापर विरोध रहित तत्त्वोपदेश से भरे हुए वीतराग-विज्ञानता के पोषक, संसार व उसके कारण विषय कषायों से विरक्त कराने वाले शास्त्रों और अहिंसामयी वीतराग विज्ञानता को बढ़ाने वाले तथा विषय कषायों व प्रमादादि को छुड़ाने वाले व्रत नियमादि रूप धर्मका (रत्नत्रय,दशलक्षण,पोड्स कारण, अष्टमी चतुर्दशी, अष्टान्हिकादि पर्यों में उत्तम, मध्यम या जघन्य रीति से १६-१६ पहर तक धर्मध्यान पूक उपवास करना, उन दिनों में कोई भी व्यापारिक या गृहादि सम्बन्धी
® नोट-यदि ऐसे सच्चे साधू संयमी त्यागी गुरु न मिले, तो शास्त्रों में कहे अनुसार गुरुओं की मन में स्थापना करके उन्हीं का परोक्ष बदनादि करना चाहिये, मात्र बाय भेप देखकर ठगाना न चाहिये, किन्तु भले प्रकार परीक्षा करके ही मानना चाहिये, क्योंकि वर्तमान समय में अनेक धूर्त अज्ञानी तथा कायर प्रमादी लोग मिष्ट भोजन वस्त्र, तथा द्रव्य के लोभ से भी अपने आपको त्यागी, ब्रह्मचारी; एल्लक तुल्लक आर्थिकादि व मुनि तक का भेष बनाकर बिचरने लगे हैं। मुनीन्द्रसागर, ज्ञानसागर, जयसागर प्रादि के ताजे दृष्टान्त हैं, ताकि धूर्ती की धूर्तता न चले और सच्चे संयमी त्यागी जनों का निरादर था उपेक्षा न होने पावे।