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चाहिए, क्योंकि मिथ्याव स हेत परिणामों की शुद्धि विना ये मक क्रियाएं मृतक के शृंगारवत् निरर्थक हैं, और वे ही सम्यस्व माहित परिणामों की शुद्धि सहित स्वर्गादि व अनुक्रम से मोक्ष के साधन रुप सार्थक हैं।
इसलिए यह उत्तम नर जन्म, स्वस्थ शरीर, श्रारखंड का निवास और दुर्लभातिदुर्लभ परम पुनीत जिन धर्म को पाकर प्रथम अपने श्रद्धान को ठीक करना चाहिए और फिर ज्ञान वैराग्य को बढ़ाते हुए यथाशक्ति चारित्र को धारण करना चाहिए। जिससे नर जन्म की सार्थकता व सुअवसर का लाभ प्राप्त कर सको।
यह शंका भी मन में नहीं रखना चाहिए, कि इस (पंचम) काल में इस क्षेत्र से तो मोज्ञ नहीं है, तब व्यर्थ का खेद क्यों करें?
अथवा खियों को भी यह शंका नहीं रखना चाहिए, कि हमको तो मोक्ष होता ही नहीं, तब हम क्यों व्यर्थ खेद करें ? क्योंकिः
यद्यपि यह सत्य है कि वर्तमान काल में इस क्षेत्र से मोक्ष नहीं होता, परन्तु क्या अन्य : विरह ) क्षेत्रों से भी नहीं होता? होता ही है। वहां तो सदैव मोत मार्ग चालू रहता है और उपशम व क्षयोपशम सम्यक्त्व, तो यहां अब भी सिद्धान्तानुसार हो सका है, तब क्यों नहीं उद्यम पूर्वक सम्यक्त्व को. प्राप्त करके यथाशक्ति चारित्र धारण किया जाय, जिससे उत्तम देव पर्याय प्राप्त करके अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त हो, या विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्ति का साक्षात् निमित्त मिलाया जाय ।