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अप्सरा अपने स्थान पर चली गई इत्यादि । कथा उन ही के पुराण में लिखी है, तब बिचारना चाहिए; कि जो ब्रह्मा एक अप्सरा के हेतु ४००० वर्ष का तप खो देता है, तो उसके सेवक क्या नहीं करेंगे ? क्या वे अपना ब्रह्मचर्य ब्रह्मा का आदर्श सन्मुख रख कर अखण्डरीच्या पाल सकेंगे ।
ऐसे ही विष्णु की दशा है, वे भी काम के वशीभूत हुए गोपिकाओं में रमते फिरे, कभी रन में जा जाकर जूझते रहे और महेश शङ्कर ने तो पार्वती को आधे अङ्ग में ही धारण कर लिया है, इतना ही नहीं, उनने अपना स्वरूप ही विलक्षण बना रक्खा है, बैल पर सवारी की है, मस्तक पर सर्प लपेट रक्खाहै, गले में मुण्ड माल है, शरीर पर भस्म लग रही है, जिन के कामांग ही संसार में पूजे जा रहे हैं इत्यादि जिनके चरित्र हैं, जो स्वयं काम व क्रोध के वश हो रहे हैं, उनका आदर्श लेकर कौन है, जो काम क्रोध रूपी सर्पों से नहीं डसा जायगा ? इसी बात को स्व० पण्डित भागचन्द्रजी ने पद्य में कैसा अच्छा कहा है । यथा
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* पद
बुध जन पक्षपात तज देखो सांचा देव कौन है इन में | टेक |
ब्रह्मा दण्डः कमण्डलु धारी,
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स्वात भ्रांति वश सुर नारिन में । :
मृग छाला. माला मूंजी पुनि,
विषयाशक्त निवास नलिन में ॥१॥