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- ऐसा होते जप हमारा मोह संसारी विषयवासनाओं व उनके कारणों से घटजाता है, तो हम को भी वह शुभ अवसर प्राप्त हो सकता है, कि जिससे हम भी समस्त परिग्रह को छोड़ साक्षात् मोक्षमार्ग में लग जाते है, साधु हो जाते हैं, साधू हो जाने पर, फिर इस प्रति मूर्ति प्रतिमा की आवश्यकता नहीं रह. जाती है, क्योंकि जिस मार्ग के प्रदर्शन का वह निमित्त कारण, थी, अब वह मार्ग प्राप्त होगया है, उस पर चलने भी लगे हैं, परन्तु इससे पहिले गृहस्थावस्था में उसकी बहुत आवश्यकता है, क्यों कि अभी तक वे उस मार्ग के अनुसारी नहीं हुए हैं, उनके पीछे बहुत झंझटे लग रही हैं, सो यदि वे भी इनका अवलंवन निरर्थक समझ कर छोड़ बैठे, तो थोड़ा बहुत जो इन के निमित्त से कुछ २ स्वरूप चिंतवन, स्मरण, मनन होता था, व कभी २ संवेग और वैराग्य की लहर उठा करती थी, जो कि भविष्य में उसे साधु मार्ग में लाने का हेतु थी, सो तो छूट जावेगी और विषय वासनाएँ व झंझटों से छुटकारा नहीं, तब उन्हीं में और२ अधिक फंसता जायगा, दुखी होता जायगा। इसलिये ही प्रत्येक गृहस्थ नरनारी, बालक बालिका सबको, नित्य प्रति दिन में ३ बार २ बार या कम से कम १ बार तो अवश्य ही जिन [निज ] दर्शन दिगम्बर जैन मन्दिरों में जाकर उन वैराग्य मई परम शांत मुद्रा युक्त प्रतिमाओं सन्मुख विनय युक्त खड़े रह कर करना चाहिये और इस निमित्त से स्वरूप चितवन करके यथा संभव व्रत, नियम, संयम, धारण करना चाहिये, यह बात इन्हीं दिगंबर जैन प्रतिमाओं के दर्शन से ही हो सकती है, अन्यत्र कहीं भी नहीं हो सकती, क्यों किं .और सभी मूर्तियां राग द्वेष के सांज" सहित 'ही मिलेंगी और यह सिद्धान्त है, कि कारण के अनुसार कार्य उत्पन्न होता है, अर्थात