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दृष्टि करके दुख देरहे हैं, सो जप कराने व दानादि देने से, वे शांत हो जायगे, परन्तु यह भी भारी भूल है, क्योंकि कोई गृह, नक्षत्र, राशि, तारे आदि कभी किसी को सुख किंवा दुःख नहीं दिया करते, वे तो अनादि काल से अपने २ मार्गों पर अपनी तीन या मन्द गति से चलते रहते हैं, ये ज्योतिषी जाति के देवों के विमान है, जो चलते दिखाई देते हैं, इनके भीतर इनके अधिष्ठाता व उसके परिवार के देव देवियां रहते हैं, इस लिये ऐसी कल्पना करना व्यर्थ हैं, कि ये सुख दुख देते हैं, जप व दान से शांत व प्रसन्न हो जाते हैं।
वास्तव में ये अपनी २ चाल पर स्वभाव से चलते है, चाहे इनके नाम से मंत्रादि बनाकर कितना ही जप करो या दान करो, अथवा कुछ भी न करो, ये तो अपनी चाल जैसी है वैसे चलेंगे ही, बदलेंगे नहीं, तब यह मिथ्या भाव जपादि का करना निरर्थक खेद का कारण है, पाखण्ड और पाखण्डियों को पोपण करना है, हां! यदि कोई नरनारी अपने उत्तम भावों से बिना फल की इच्छा किये सुपात्र [ भक्ति ] दान या करुणादान, या सच्चे देव शाख गुरु की भक्ति, जप, पूजा व तपादि करेंगे, तो उसका यथा योग्य पुण्य फल उनके शुभं भावों के अनुसार अवश्य ही होगा, तब कोई कहेगा ! कि ज्योतिषशास्त्र में जो गृहादि का शुभाशुभ फल बताया है, सो क्या झूठ है । तो उत्तर यह है कि ज्योतिष शाख मँठा नहीं है, उसमें, जो उन गृहादिकों का फल बताया सो भी ठीक है, वह इस प्रकार है, कि जब कोई गृह किसी राशि पर आता है या अनेक प्रह एकत्र हो जाते हैं, तो उस समय या उस राशि में जन्म लेने वाले को