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उल्टा बढ़ेगा, उसमें भी अनुभाग व स्थिति बढ़ जायगी और नवीन भी शुभ कर्म अधिक बँध जायगा । अतएव धैर्य धारण कर सहना और सन्मार्ग में स्थिर रहने से लाभ होगा ।
यदि अशुभोदय से रोगादि शारीरिक पीड़ा होवे, तो उसकी चतुर वैद्य द्वारा चिकित्सा करानी चाहिये, यदि धन न हो, तो न्याय पूर्वक आजीविका ( व्यापार धन्धा, शिल्पादि उद्योग, या नौकरी महनत मजूरी ) करना चाहिये । यदि विपक्षी द्वारा उपद्रव होता हो, तो उसका अपने तनसे, धन से, विद्या बुद्धि से, स्वयं श्रथवा, बन्धु मित्र, राज्य या पचों द्वारा उचित प्रतिकार करना व कराना चाहिये और अपनी व अपने परिवार की, जाति व समाज की, देश व धर्म की, धन की रक्षा करना चाहिए । यदि संतान न हो, तो बुद्धि पूर्वक उपाय - यह है, कि सुयोग कन्या का पाणिग्रहण करके ऋतुकाल में गर्भधारण करना चाहिये और यदि इतने पर भी संतान न हो, - तो अपने कुटुम्ब का, जाति का, या वर्ण का जो स्वधर्मी व - कुलीन घराने का सुन्दर स्वस्थ, बुद्धिमान बालक हो, उसे गोद रखकर · अपना बालक समझना चाहिए और यदि बहुत 'चालक चाहिए, तो अच्छे से अच्छा उपाय तथा इहलोक 'परलोक दोनों में हितकारी तथा कीर्ति और पुण्य वृद्धि करने का यह है, कि अपनी सम्पत्ति चिरस्थायी रूप से गुरुकुल, 'छात्राश्रम, श्राविकाश्रम आदि ऐसी विद्या संस्थाओं में लगा देवे, 'कि नहीं समाज व देश के होनहार बालक भोजन वस्त्र, पाठ्य पुस्तकें आदि प्राप्त करते हुए सरस्वती सेवा (विद्यालाभ )