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अमुक सुख दुःख, जीवन मरण, हानि लाभ आदि होना चाहिए: ऐसी सूचना मात्र मिलती हैं ।
अर्थात् इनके संयोग वियोग आदि से होनहार बान का अनुमान लग जाता है, परन्तु वे ऐसा करते रहते नहीं है । ऐसे
कादि शकुन भी भावो शुभाशुभ होने के सूचक हैं, अभिव्यंजक हैं, न कि कर्ता हर्ता हैं, यदि वैसा होना होगा तो उन. शकुनों में, उन मुहूतों में, उन गृहादि संयोग वियोगों में वह कार्य वैसा हाबनेगा, अन्यथा नहीं, मानों कोई ग्रामान्तर जारहा है, उसे मार्गों में हानि व लाभ होना है, तो छींक आदि या मङ्गल कलश आदि वैसे ही, उसे मिलेंगे या वह उन्हीं अवसरों में चलेगा, जिससे उसे हानि या लाभ हो, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि उस छोंक आदि शकनों या गृहों, नक्षत्रों ने वैसा स्वयं जाकर दिया, तात्पर्य - जैसा २ जिस २ जीव का जिस २ अवसर पर जो २ कुछ होना है, वही २ वैसा २ उसी २ अवसर पर उसी २ जीव का उसी २ प्रकार होगा, वाह्य शकुनादि भी वैसे ही मिल जायेंगे, इस लिए इन गृहादि का जप - करना, सूर्यादि को पानी देना सब व्यर्थ हैं, यह अपने ही पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्मों का फल सुख दुख, संयोग वियोग, जीवन मरण, लाभाताम आदि रूप होता है, इस लिये इस मिथ्या विश्वास को छोड़ कर सत्गुरु देव धर्म को भक्ति व ' सुपात्र दान, दयादानादि करते जाना चाहिये और आए हुए कर्मोदय जन्य फल को धैर्य व शांति पूर्वक सहन करना चाहिए, क्योंकि (बेना फल दिये वह छ टेगा नहीं और खेद खिन्न होने या श्रद्धा बिगाड़ कर मिध्यात्व रूप पाखण्ड क्रियाऐं करने से '
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