Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 58
________________ ( ५७ ) भावार्थ-गङ्गा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी, सिन्धु, ब्रह्मपुत्रा, कृष्णा, वैनगङ्गा आदि नदियों या समुद्रों में यह समझ कर नहाना कि इससे हमारे पाप नष्ट हो जायगे, बूढ़े पुराने नहाते आये हैं, मभी नहाते हैं, हम भी नहावेंगे, तो हमारे भी पाप छूट जावेंगे, इत्यादि मूढ़ता है। क्योंकि पाप कुछ शरीर के ऊपर नहीं लिपटे रहते, जो नहाने से छूट जावेंगे, नहाने से तो शरीर का मैल अवश्य ही छूट सकता है, पाप नहीं। क्योकि यदि इनमें नहाने से पाप छूट सकते, तो इन में निरन्तर रहने वाले मगर मत्स्यादि प्राणी या धीवर, मल्लाह आदि गोताखोर, तैराकलोग सभी मोक्ष होगए होते, पोलिस व कोटों की भी जरूरत न होती, क्योंकि पाप करने वाले गङ्गादि नदियों में नहा लिया करते और पवित्र (निष्पाप) हो जाते, उन्हें पकड़ने व पञ्च दण्ड, राज्य दण्ड देने को प्रावश्यक्ता ही न रहती, परन्तु ऐसा नहीं होता, किन्तु इससे विपरीत देखा जाता है, कि ऐसे स्थानों पर ही ठग, चोर, व्यभिचारी, गुण्डे विशेप रूप से रहते और बेचारे भोले नर नारियों को धर्म धन लूटा करते हैं। एक बार लोकमान्य तिलक महोदय ने भी अपने व्याख्यान में कहा था, कि लोकों का यह भ्रम है. कि "गङ्गा स्नानान्मुक्तिः” अर्थात गङ्गा स्नान से मुक्ति होती है, इसलिये उन्हें जानना चाहिए कि "न गङ्गास्नानान्मुक्तिः किन्तु कायमलान्मुक्तिः" अर्थात् गङ्गा स्नान से आत्मा की मुक्ति नहीं, किन्तु शरीर की मल से मुक्ति होती है इत्यादि । सो यदि शरीर के मल ही की मुक्ति होती है, तो शरीर का मल तो किसी भी जलाशय के जल से घर बैठे भी धोया जा सकता है, उसके लिए इतना श्रम उठा कर समय और द्रव्य का व्यय करना व्यर्थ

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