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(.: ५५ ). जात रक्खा" इसलिए उसके हुक्म के खिन्नाफ में एवदार बनना नहीं चाहता इत्यादि । और भी भैया भगवतीदासजी ने ब्रह्म विलास में कहा है- . रोग उदय जग अंध भयो,
महजहि सब लोकन लाज गुमाई। · सीख बिना सब सीखत हैं,
विषयान के सेवन की चतुराई ।। तापर और रचे रस रीति,
कहा कहिए तिनकी निठुराई । अन्ध असूझन की अँखियान में,
___ झोंकत हैं रज राम दुहाई ।। इस सब का अभिप्राय यही है, कि जब सभी संसारी आणी इन काम क्रोधादि के वश हो रहे हैं, तिस पर भी उनका और भी वैसा ही साहित्य जुटा देना उनके साथ घोर अत्याचार करना है। इसलिए उनके सामने तो वही आदर्श आना चाहिए, जिसकी उनको जरूरत है और वह आदर्श है "वीतरागता" क्यों कि यही संसारी जनों को चाहिए इसी की उन में कमी है व इसी की जरूरत है। - और वह वीतरागता वीतगगी देव में ही मिलेगी, अन्यत्र. नहीं, वह वीतराग देव जिन (जीते हैं कई शत्रु जिसने ) अहंत सर्वज्ञ प्राप्त में ही पाई जाती है और उनका साक्षात् अभाव वर्तमान काल में इस क्षेत्र में है । अतएव उनका आदर्श ग्रहण,