Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 55
________________ ( ५४ ) ते हैं कुदेव तिन की जु सेव । शठ करत न तिन भव भ्रमण छेच ॥" अर्थात जे रागद्वप रूपी मल से मलिन हैं, जिन के साथ खी आदि चेतन तथा गदादि हथियार या वस्त्राभूषण आदि अचेतन परिग्रह हैं वे कुदेव हैं। उनकी जो अज्ञानी सेवा करते हैं, उनके संसार का अन्त नहीं आता, बात सत्य है, साथ में खी का होना काम बिचार का हेतु है, ब्रह्मचारी क्यों स्त्रीरक्खेगा? गदादि हथियार वही रक्खेगा जिसे चैरियों का भय होगा या जिसके वैरी शेष होंगे । वस्त्र वही पहिरेगा जिसके शरीर में बिकार होगा, आभूषण वही पहिरेगा जो स्वयं तो सुन्दर नहीं है, परन्तु सुन्दर बनना चाहता है, परन्तु जिन में ये दोष नहीं है, वे क्यों इन दिक्कतों में फंसेंगे ? इसलिए श्रीवादिराज मुनिराज ने "एकीभाव स्तोत्र" में क्या ही उत्तम कहा है। कि हे जिनेन्द्र ! 'जो कुदेव छवि हीन वसन भूषण अभिला। बैरी सों भयभीत होंय सो प्रायुध रोखें। तुम सुन्दर सर्वांग शत्रु समरथ नहिं कोई । भूषण बसन गदादि ग्रहण काहे को होई ॥" इत्यादि इसी प्रकार किसी नन्न फकीर ने औरङ्गजेब बादशाह के द्वारा भेजे हुए वखों को यह कह कर वापिस कर दिए थे, कि "ए पातशाह जिसने तुझे शहन्शाही बक्शी है, उसी ने मुझे फकीरी बख्शी है, उसी ने जिसके जिस्म में एव देखा उसे लिवास पहिनाया और जिसका बे एव जिस्म देखा मादर.

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