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इनको जड़ के पुजारी - मानना जड़ ( मूर्ख) पना है । इस लिए जो प्रतिमा के जड़पना को लेकर जड़वाद संसार में फैलाते हैं । या अन्य जड़ वस्तुओं को पूजते हैं । वे जड़ हैं, मूर्ख - अज्ञानी हैं, उनको शीघ्र ही इस भूल को त्याग देना चाहिये ।
यहाँ कोई कह सकता है ? कि जैसे जैनी मूर्ति के द्वारा आराध्य देव को पूजते हैं, वैसे ही अन्यान्य जन भी मूर्तियों के द्वारा अपने अपने आराध्य देवों की आराधना करते हैं ? तो उत्तर यह है, कि यह तो ठीक है कि वे भी ऐसा ही मान कर करते होंगे, परन्तु बिचारणीय बात तो यह है, कि गोवर मिट्टी कुम्हार का चाक, बड़ पीपल, समुद्र नदी आदि कोई देव भी तो नहीं है, यदि हैं, तो इनकी कथा क्या है ये कौन देव हैं क्या शक्ति रखते हैं ? बचा कोई गोचर पुराण, बड़ पुराण, तुलसी पुराण, नदी पुराण भी हैं ? यदि हैं तो इनके पूजने का फल क्या है ? अर्थात् कुछ नहीं । बहुतों की मान्यता होगी, घर के पूजने से बर ( उत्तमं पति ) मिलता है, चाक पूजने से सदा सुहाग बना रहता है इत्यादि । सो ये सब बातें "बुढ़िया पुराण" अर्थात कल्पित दन्त कथाएँ हैं, यदि सत्य होती, तो चाक पूजने वाली हजारों महिलाएँ क्यों विधवा हो जातीं? हजारों वर पूजने वाली सुशील महिलाएँ क्यों विपरीत बर पोतीं, क्यों उनके द्वारा सताई . जातीं ? इत्यादि । रही अन्य देवों की मूर्तियों की बात, सो बिचारना चाहिये, कि जो वस्तु अपने स्वरूप सहित हमारे सामने नहीं हैं, उसी वस्तु की कल्पना अन्य तद्रूप वस्तु में की जाती है सो भी किसी प्रयोजन के वश से, जैसे कहीं कोई बड़ी सभा या पंचायत है, उसमें उसके सदस्यों की उपस्थिती आवश्यक है, परंतु -यदि कोई सदस्य कारण वशात् उपस्थित नहीं हो सकता, तो वह अन्य किसी व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बना देता है और प्रति•