Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 49
________________ ( ४८ ) वेश्यादि की शृङ्गार सहित मूर्ति कामोत्पत्ति में जैसे निमित्त है -वैसे ही तीर्थकों की दिगम्बर जैन वैराग्य मई मूर्ति वैराग्य उत्पातक व शान्ति प्रदायक कारण है। यदि कोई कहे कि एक वार दर्शन कर लिया, फिर नित्य प्रति व दिन में कई वार घटों तक दर्शन की क्या आवश्यकता है ? तो उत्तर यह है कि जैसे 'नित्य प्रति वार २ भूख लगते व प्यास लगने पर नित्य प्रति वार२ खाया पिया जाता है। रोग आने पर दवा सेवन की जाती है, वैसे ही विषय कुपायों में आशक्ति हो जाने से जिन दर्शन की आवश्यकता होती है, जैसे भोजन पान औषधि भूख, प्यास, व रोग मिटाने में निमित्त कारण है। वैसे ही विषय कषाय रूपी रोग मिटाने को, वैराग्य मय दिग० जैन प्रतिमा का दर्शन निमित्त कारण है, अवलम्बन है, विना अवलम्बन के संसारी गृहीजनों का चित्त एकाग्र नहीं हा सकता, परन्तु जैसे अभ्यास से भूख 'प्यास का वेग घट जाता है, तव भोजन की आवश्यक कम हो जाती है, वैसे ही अपने आत्मा में आत्मानुभव ज्यों २ बढ़ता जाता है। त्यो त्यों वाह्य अवलम्बन छूटतो जाता है। न कि छोड़ दिया जाता है। अतएव दिगम्बर जैन शांत वैराग्यमय मूर्ति का दर्शन अवश्य करना चाहिये। यह भी ध्यान रहे कि शास्त्रज्ञान तो अवस्था पाकर ही होगा, परन्तु प्रतिमा दर्शन से तो पढ़े,बाल-वृद्ध युवा, नर नारी सभी लाभ उठा सकते हैं। अतएव वाल्यावस्था (शिशुवय) से ही जिन दर्शन का संस्कार डालना चाहिये। यही संक्षेप में जैनियों के मूर्ति पूजा का अभिप्राय है तात्पर्य-ये नद प्रतिमा को नहीं, किन्तु प्रतिमा से जिन महात्माभों :::.":" का बोध होता है, उनहीं के जैन, लोग पुजारी हैं।

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