Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ (३०) ऐसी दशां हुई, जैसे कोई स्त्री अपने धर्म ( ब्रह्मचय ) की रक्षा के लिए गृह त्याग कर बन में किसी साधु के आश्रम में गई और निवेदन किया, प्रभो ! मेरा पति परलोक सिधार गया, मेरे सम्बन्धी मुझ पर कुत्सित दबाव डालते हैं, इसलिए राजा के निकट पुकार की तो राजा भी इस हाड़ मांस के पिण्ड पर आशक्त होगया, तब लाचार होकर वहां से किसी तरह निकल भागी, तो मार्ग में १ वेश्या ने आश्रय दिया, परन्तु मेरे द्वारा वही वेश्यावृत्ति कराना चाही। मैं इस पर राजी न हुई, इसलिए आप को अनन्य शरण जान कर सेवा में आई हूँ । आशा है, कि अब मेरे शील की रक्षा अवश्य हो जावेगी, यह सुनकर और उस अबला को असहाय जान कर साधुजी ही स्वयं उस पर बलात्कार करने पर उतारू होगए, तब कहिए अब कौन उस की रक्षा कर सकता है ? कहा है " " बाढ़ खेत खोने लगे, पञ्च घूसखोर राजा भये, न्याय करें अन्याय । कौन पै जाय ॥" " 'तात्पर्य - संसारी दुःखों से सन्तप्त प्राणी, दुखों से छूटने के लिए ही किसी देव धर्म व गुरु की शरण ग्रहण करते हैं, परन्तु वे जब स्वयं उन्हीं दुःखों से ( जिन से संसारी प्राणी दुखी हैं) दुखी हैं तो वे अपने आश्रित आए हुए दीनहीन जनों की कैसे रक्षा कर सकते हैं ? नहीं कर सकते । • * इसलिए ऐसे देव की शरण लेना चाहिए, जो सर्वथा निर्दोष हो, जो पूर्ण ज्ञानी हो और सहित उपदेश करने वाला आनन्द स्वरूप हो, उसी का आदर्श व उपदेश लेकर अपना .

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84