Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 32
________________ ( ३१ ) कल्याण करना चाहिए, वह एक अहत सर्वज्ञ वीतराग जिनदेव ही है, अन्य नहीं। देखो ब्रह्मा को कोई कोई लोग देव मानते हैं, परन्तु वह बेचारा स्वयं एक तिलोत्तमा नाम की वेश्या के वश होकर अपनी ४००० वर्ष की तपस्या भङ्ग कर बैठा अर्थात् ब्रह्मा की तपस्या देख कर देवलोक का इन्द्र भयभीत होगया कि कहीं यह तप के बल से मेरा राज्य न लेलेवे, इसलिए उसे तप से भ्रष्ट करने की इच्छा से उसने सब देवताओं के शरीर में से तिल तिल भर मांस लेकर एक सुन्दर अप्सरा बनाई और जहाँ ब्रह्मा तप कर रहे थे, भेजी। वह वहाँ जाकर उनके सन्मुख हावभाव पूर्वक नृत्य करने लगी, जब ब्रह्मा ध्यान छोड़ कर उसे देखने लगे तो वह पीछे जाकर नाचने लगी, यहाँ ब्रह्माजी को उस में आशक्ति उत्पन्न होगई, इसलिए बिचारने लगे, कि यदि आसन या मुँह फेर कर देखूगा, तो लोग मुझे ध्यान से चलित समझ लेंगे, इसलिए अपने १००० वर्ष के तप के बदले पीछे को. ओर मुंह बना लेना चाहिए । इससे लोक में तप की महिमा भी बढ़ेगी और अपनी प्रेयसी का नृत्य भी देख लूगा, बस बोले यदि मेरा तप सत्य है, तो १००० वर्ष के तप के बदले मेरा १ मुँह पीछे हो जाय । तब एक मुँह पीछे होगया, परन्तु अप्सरा. यहाँ. से हट कर दाहिनी ओर नाचने लगी, तब १००० बर्षके तपके बदले तीसरा मुह बनाया, इसपर अप्सरा बाई ओर आकर नाचने लगी, तो पुनः १००० वर्षे केन्तप के बदले बाई ओर मुंह बना लिया, तब अप्सरा मस्तक के ऊपर नाचने लगी, इसलिए १००० वष का शेष तप खोकर एक गर्दभाकार' मुख"ऊपर बना कर देखने लगे। इस तरह इनके समस्त तप को खोया जान कर

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