Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 38
________________ ( ३७ ) टूटे हुए बहुत से भाग एक कोठरी भोयरे जैसो में पड़े हैं, जत्रा [गुजरात] के दो मन्दिरों में टांकी बनी हैं, सो जो तेल भैरोंजी पर चढ़ता है, वह एक छेद में होकर नीचे टंकी में चला जाता है, उस तेल का उपयोग मन्दिर में या भट्टारक जी के यहां जलाने में होता है वा गोरी [ पुजारी ] भी लेजाता है, कहीं २ इनकी पाषाण निर्मित मूर्तियां भी हैं, जिनमें कहीं कुत्ते पर सवारी जैसे बनारस के भदेनी के मन्दिर में है, कहीं बैल भैंसा की सवारी रक्खी हैं इनकी लोग लौकिक सिद्धि के अभिप्राय से पूजते हैं, जिनेन्द्रदेव से भी अधिक पूजते हैं, मान्यता रखते हैं, मैसूर प्रांत में तो हूमच पद्मावती करके एक प्रसिद्ध स्थान है वहां ५-६ दिग० जैन मन्दिर है उनमें बहुत मनोज्ञ प्रतिमाएँ हैं, परन्तु उनका प्रक्षाल तक नहीं होता, प्रतिमात्र पर धूल चढ़ी रहती है, मन्दिरों में पशु भी घुसे रहते हैं, वेमरम्मत हो रहे हैं, परन्तु यात्री वहीं बड़ी २ कीमती साढ़ियाँ १५०-२०० तक की कीमत की पद्मावती को चढ़ाते हैं घंटों भक्ति करते है, यहां १ मठाधीस भट्टारक रहते हैं, जो हाथी रखते हैं' चांदी की खड़ाऊ पहिनते हैं और पद्मावती देवी कों चढ़ी हुई साढ़ियों का उपभोग करते हैं । आगन्तुक भोले जीवों को मन्त्र यन्त्रादि का 'लोभ देकर,' शाक, भाजी, फलादि, अपने बगीचेसे खिलाकर भोजनाद कराकर हाथी पर घुमा-२ कर खुशामद करके खूब पैसा ठगते हैं, परन्तु जिन मन्दिरों की रक्षा जीर्णोद्धार व पूजा में पाई नहीं लगाते, शायद ही ये दर्शन करते हों, गुजरात प्रांत के तीर्थों व ग्रामों के मन्दिरों व उत्सवों में जब चढ़ावा बोला जाता है, तो जिनेन्द्र की

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