________________
( २६ ) अधिक दृढ़ होंगे. बढ़ेंगे न कि घटेंगे । जैसे गुरुचि स्वयं कड़वी होता है और तिसः पर भी उसकी बेलि नीम के. वृक्ष पर चढ़ा दी जाय, तो फिर उसका कडुवापन और भी बढ़ेगा न कि घटेगा, ऐसे ही संसार के सभी प्राणी जड़ ( अचेतन ) शरीर में स्वात्म बुद्धि करके शरीर से सम्बन्धित इन्द्रियों के विपयों में आप ही निमन हो रहे हैं, वे अपने अनुकूल इष्ट पदार्थों में रोग और प्रतिकूल अनिष्ट पदार्थों में द्वेष करते हैं, इष्ट के वियोग में खेद व शोक करते हैं और अनिष्ट के संयोग में ग्लानि करते हैं, प्राप्त इष्ट विषयों का. कहीं वियोग अथवा. अनिष्ट विषयों का संयोग न होजाय, इसके लिए भयभीत व शंकित चित्त रहते हैं। कभी स्त्री संयोग, कभी पुरुप संयोग और कभी उभयसंयोग की इच्छा से निरन्तर व्याकुल रहते हैं, किसी को अपने प्रतिकूल जोनकर क्रोध करते हैं, कभी अपना बड़प्पन प्रगट करने के लिए मान करते हैं, कभी प्रयोजन साधने के लिए छल 'कपट करते हैं, कभी अनुकूल इष्ट कल्पित पदार्थों के संग्रह करने
की तृष्णा में जला करते हैं, कभी स्वमन रजनार्थ 'दूसरों की हँसी उड़ाते हैं, निन्दा करते हैं, कभी हँसते हैं, कभी गेते हैं, कभी गाते हैं, कभी खाते हैं, पीते हैं, कभी सुन्दर रूप देखने में लालायित रहते हैं, कभी सुन्दर मधुर आलाप सुनने में मग्न रहते हैं, कभी इत्र फुलेल शरीर में चुपड़ते हैं और गन्ध में प्रा. शक्त हो जाते हैं, कभी नाना प्रकार के स्वाद लेने की उत्करठा करते हैं इत्यादि । अंवस्थाएँ जबकि इन संसारी प्राणियों की होती रहती हैं, जो बेचारे आप ही उक्त रोगों से दुखी हैं और तिस पर उनको उन से अधिक विषयी व कषायी देव; गुरु तथा धर्म का सहारा मिल जाय, तो फिर कहना ही क्या है? उनकी